कटनी, दैनिक मध्यप्रदेश
नगर निगम और पंचायत चुनावों के पहले कटनी की स्थानीय राजनीति गर्म हो चली है, दोनों ही दलों के नेता और कार्यकर्ता जहां अपनी खुद की तैयारियों में जुट गये हैं, वहीं गांवों और गलियों तक निगाह दौड़ाने का काम भी शुरू हो गया है। सियासी बिसात बिछाने की इस होड़ में जहां कांग्रेस के पास प्रदेश में सरकार है तो भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के नाम का सहारा लेकर गलियों में जाने की तैयारी कर रही है।
दो दिन पूर्व नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरोध में तथा शहर के रूके विकास कार्यों को गति देने की मांग करते हुये कांग्रेस पक्ष के पार्षदों और जिलाध्यक्षों ने जनता को लेकर निगम में बड़ा प्रदर्शन किया। कांग्रेस के इस विशाल धरना-प्रदर्शन से क्षुब्ध होकर चौथे दिन महापौर और भाजपा पार्षदों ने निगम प्रांगण में ही ”शुद्धियज्ञ” कर डाला तथा कांग्रेस पार्षदों पर तीखे आरोप लगा डाले। वास्तव में यह सब कुछ अब अगले चुनाव के लिये बिछाई जा रही बिसात की शुरूआत है। शहर में विकास के नाम पर कहीं कोई बड़ा काम न कर पाने वाली निगम की सत्ता अब लोगों का ध्यान विशिष्ठ मुद्दों से हटाना चाह रही है।
अधर में है वार्डों का परिसीमन
नगर निगम की सीमा बढ़ाने का काम अभी भी अधर में है। भले ही 15 गांव वाली 10 पंचायतों को शामिल किये जाने का प्रस्ताव स्थानीय प्रशासन से भेजा गया हो और प्रकाशन भी कर दिया गया हो लेकिन शासन स्तर पर लंबित आदेशों के आभाव में कटनी नगर-निगम में अभी तक परिसीमन की प्रक्रिया रूकी हुई है। नये ग्रामों के विलय होने के बाद बढ़े हुये वार्डों के अनुसार सीमाओं का निर्धारण किया जाना है। लेकिन अभी तक काम शुरू नहीं हुआ जिसके कारण अभी तक वार्ड आरक्षण का कार्य भी अटका हुआ है। आरक्षण नहीं हो पाने से वार्डों में चुनाव लडऩे के इच्छुक नेता अभी ऊहापोह में हैं वे यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि किस वार्ड से चुनाव लड़ पायेंगें।
प्रदेश की बदली तस्वीर से जिले में भी अफवाहें
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के साथ पड़ोसी विधानसभा क्षेत्र मैहर के विधायक नारायण त्रिपाठी और ब्यौहारी के विधायक शरद कोल के भाजपा से मोहभंग होते ही कटनी के दो विधायकों पर प्रदेश भाजपा की गहरी नजर है, क्योंकि कटनी से विधायक संदीप जायसवाल और विजयराघवगढ़ से विधायक संजय पाठक दोनों ही पूर्व में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गये थे इसलिये भाजपा इन दोनों पर ही अपनी नजर बनाये हुये है। हालांकि विधायक संजय पाठक ने तुरन्त ही अपना स्पष्टीकरण देकर साफ कर दिया है कि ”भाजपा उनका घर है और वे अपने इस घर में रहने वाले हैं।”
उधर विधायक संदीप जायसवाल ने अभी तक इस बारे में न तो कोई स्पष्टीकरण दिया है और न ही कहीं भाजपा से अपना असंतोष ही जाहिर किया है लेकिन फिर भी कांग्रेस में गुजारे उनके दिनों के कुछ साथी यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि ”संदीप को कांग्रेस में आने में क्या परहेज है।” भीतरखाने की खबरों को माने तो संदीय जायसवाल के नजदीकि भी उन्हें ”अपना हित देखने” की तरफ इशारा करने और समझाइश देने से नहीं चूक रहे हैं। हालांकि अभी इस बारे में कुछ भी ठोस रूप में कह पाना संभव नहीं है। लेकिन इतना जरूर है कि सियासी चालों के बीच प्रदेश की राजनीति के इतर कटनी की स्थानीय- राजनीति कब फिजां बदलकर खड़ी हो जाये, कह नहीं सकते!!
भाजपा की गुटबाजी भी दिखेगी स्थानीय चुनाव में
अभी तक अपनी आपसी गुटबाजी से परेशान दिखाई देने वाली कांग्रेस की तरह 15 साल सत्ता में रही भारतीय जनता पार्टी भी जिले में कई गुटों में बंटी दिखाई दे रही है। आश्चर्य की बात तो यह है कि मूल भाजपा भी अपने आपमें कहीं इकट्ठी नहीं दिखाई देती, कांग्रेस से बीजेपी में आये नेता जिले की राजनीति में शीर्ष पर हैं और मूल भाजपा के नेता भी उन्हीं के गुटों में बंटे से रह गये हैं। भाजपा में कहने को तो 3-4 गुट प्रमुख रूप से हैं लेकिन मूलत: 3 गुट ज्यादा हावी दिखाई देते हैं। प्रश्न यह है कि स्थानीय राजनीति में अपने-अपने वर्चस्व को बनाये रखने के प्रयासों के बीच क्या गुटबाजी कहीं थमते दिखाई देगी या कांग्रेस के 3-4 गुटों के मुकाबले भाजपा भी अपनी ही गुटबाजी से ग्रस्त होकर नगर-निगम की सत्ता के रास्ते पर असहाय हो जायेगी।
ये हो सकते हैं मुद्दे
नगर निगम के अन्दर परिषद की बैठकों के निर्णयों का परिपालन, निर्माण कार्यों में भ्रस्टाचार के आरोप, स्वच्छता कर और जलकर के नाम पर वसूले जा रहे अतिरिक्त टैक्स तथा बड़े विकास कार्यों का ना होना, या मुख्य मार्गों का चौड़ीकरण, सिटी बस, ट्रांस्पोर्ट नगर, कटनी नदी के पुल, सीवर लाइन की खुदाई और एमएसडब्ल्यू के कार्यों पर लगे बड़े आरोप ये सब वो मुद्दे हैं जो कांग्रेस पार्टी स्थानीय चुनाव में उठा सकती है लेकिन बहुमत वाले महापौर और पार्षदों को लेकर भाजपा के पास ”मोदी फैक्टर” के अलावा, प्रधानमंत्री आवास योजना के गृहनिर्माण, कचरे से बिजली बनाने के इमलिया सयंत्र और वार्डों के विकास कार्य ही उपलब्धि के रूप में बताये जा सकते हैं। हालांकि मुद्दों के इतर पार्षद प्रत्याशी की छवि इन चुनावों में बड़े मायने रखती है।