बीते बुधवार रात में एस्सार पावर बधौरा का राखड़ डैम के फूटने से आसपास के क्षेत्र में भारी तबाही मचाई है।लोग काफी परेशान है उनका जनजीवन प्रभाबित हो गया है।डेम का राखड़ युक्त मलवा पानी लोगो के घरों व खेतो में भर कर किसानों के फसलों को पूर्णरूप से नष्ट कर दिया। मामले की जानकारी होते ही रात में ही जिला प्रशासन समेत तमाम प्रसासनिक अमला दलबल के साथ मौके पर पहुंचे।
प्रभावित स्थानीय लोगों ने प्रबन्धन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुये उनके खिलाफ कार्यवाही की मांग की है। पीड़ित परिवारो ने मुआवजे की मांग करते हुए एस्सार प्रबन्धन पर घोर लापरवाही का आरोप लगाया है।पीड़ितों का आरोप है कि एस्सार द्वारा प्लांट से निकलने वाली राख से ही बंधा का निर्माण कराया गया है।वही मानकों की अनदेखी के चलते बंधा बेहद कमजोर है। यह कोई नई बात नही है।
बंधा निर्माण से लेकर अब तक मे कई बार फुट चुका है।जिससे होने वाली भारी तबाही को यहाँ के ग्रामीण किसान बराबर झेल रहे है।निर्माण के वक्त इसका ग्रामीणों ने काफी बिरोध भी किया था लेकिन उनकी एक न सुनी गई।उनका मानना है कि प्रबंधन की लापरवाही के चलते यह घटना घटित हुई है। प्रशासन ने जांच का आस्वासन दिया है।कहा है कि जाँच के बाद उचित कार्यवाही की जायेगी।
सिंगरौली में 10 कोयला आधारित पॉवर प्लान्ट हैं, जिनकी कुल क्षमता देश के किसी भी इलाके में सबसे ज़्यादा 21,000 मेगावॉट है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, इन्हीं पॉवर प्लान्टों ने सिंगरौली को गाज़ियाबाद के बाद देश का दूसरा सबसे ज़्यादा प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्र बना दिया है.
ग्रामीणों द्वारा मोबाइल फोनों के ज़रिये खींची गई तस्वीरों और बनाए गए वीडियो में पॉवर प्लान्ट के आसपास के इलाकों में गाद की बाढ़ को देखा जा सकता है, जिसमें खेतिहर ज़मीनें भी शामिल हैं.
इस कृत्रिम तालाबा का इस्तेमाल उस राख को जमा करने के लिए किया जाता है, जो कोयला आधारित पॉवर प्लान्ट में मूल उत्पाद के साथ-साथ पैदा हो जाती है. कोयले की यह राख बेहद हानिकारक होती है, जिसमें आरसेनिक समेत कई ज़हरीले पदार्थ होते हैं. विज्ञानियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि पॉवर प्लान्टों के आसपास इस तरह राख के लीक हो जाने से ज़मीन के भीतर मौजूद पानी बहुत ज़हरीला हो सकता है, और इससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा.
सरकार तथा प्रदूषण नियंत्रण के नियमों के अनुसार, राख के तालाबों के चारों और कंक्रीट की दीवार बनाई जानी चाहिए, और नियम यह भी कहते हैं कि राख के तालाबों को क्षमता से ज़्यादा इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.