जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को रद्द करने के बाद राज्य में लगाए गए सभी प्रतिबंधों को तत्काल हटाने का केन्द्र और राज्य सरकार को निर्देश देने से मंगलवार को इंकार करते उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वहां की स्थिति बहुत ही संवेदनशील है. न्यायालय ने कहा कि हालात सामान्य करने के लिए सरकार को समुचित समय दिया जाना चाहिए और उसे भी यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्य में किसी की जान नहीं जाए।
इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले में दायर याचिका दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का आदेश दे दिया। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ कांग्रेस कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
इस याचिका में अनुच्छेद 370 के प्रावधान रद्द करने के बाद जम्मू कश्मीर में पाबंदियां लगाने और कठोर उपाय करने के केन्द्र के निर्णय को चुनौती दी गई है। केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि इस क्षेत्र की स्थिति की रोजाना समीक्षा की जा रही है और अलग-अलग जिलाधिकारियों से रिपोर्ट प्राप्त की जा रही है और इसी के अनुसार ढील दी जा रही है।
अटार्नी जनरल ने कहा, हमें यह सुनिश्चित करना है कि जम्मू कश्मीर में कानून व्यवस्था बनी रहे। उन्होंने जुलाई, 2016 में एक मुठभेड़ में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने की घटना के बाद हुए आन्दोलन का हवाला दिया और कहा कि उस समय हालात सामान्य करने में करीब तीन महीने लग गए थे।
वेणुगोपाल ने कहा कि 1990 से अब तक आतंकवादी 44,000 लोगों की हत्या कर चुके हैं और सीमा पार बैठे लोग उन्हें निर्देश और हिदायतें दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात में जम्मू कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल करने में कुछ दिन लगेंगे। वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि जम्मू कश्मीर में पिछले सोमवार से प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से एक भी मौत नहीं हुई है।
अटार्नी जनरल इस याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ के सवालों का जवाब दे रहे थे। पीठ राज्य में स्थिति सामान्य करने और बुनियादी सेवाएं बहाल करने के बारे में प्राधिकारियों द्वारा उठाए जा रहे कदमों के बारे में जानना चाहती थी। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, जम्मू कश्मीर में स्थिति इस तरह की है जिसमें किसी को भी यह नहीं मालूम कि वहां क्या हो रहा है। सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए। वे दैनिक आधार पर स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं।
पीठ ने कहा, सरकार का प्रयास सामान्य स्थिति बहाल करने का है। इसीलिए वे दैनिक आधार पर स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं। यदि जम्मू कश्मीर में कल कुछ हो गया तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? निश्चित ही केन्द्र। पीठ ने यह भी कहा कि इस मामले में कोई भी आदेश देने से पहले उसे इसके विभिन्न पहलुओं पर गौर करना होगा। इसलिए सरकार को राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए समुचित वक्त दिया जाना चाहिए।
पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी से कहा कि वह स्पष्ट रूप से बताएं जहां राहत की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, आप हमें स्पष्ट दृष्टांत बताएं और हम उन्हें राहत उपलब्ध कराने का निर्देश देंगे।
शीर्ष अदालत ने अटार्नी जनरल से जानना चाहा कि हालात सामान्य बनाने के लिए कितना वक्त चाहिए, इस पर वेणुगोपाल ने जवाब दिया कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि राज्य में कानून व्यवस्था बनी रहे और आम जनता को कम से कम असुविधा हो। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में सैन्य बल और अर्द्ध सैनिक बलों को जम्मू कश्मीर में तैनात किया गया है।
मेनका गुरुस्वामी जब यह दलील दे रहीं थीं कि राज्य में हर तरह के संचार माध्यम ठप कर दिए गए हैं और त्योहार के अवसर पर लोग अपने परिजनों का हालचाल नहीं पूछ सके, पीठ ने कहा, रातों रात कुछ भी नहीं हो सकता। कुछ गंभीर मुद्दे हैं। हालात सामान्य होंगे और हम उम्मीद करते हैं कि ऐसा समय के साथ होगा। इस समय महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करना है कि किसी की जान नहीं जाए।
वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि वहां किसी प्रकार की हिंसा या मानव अधिकारों का हनन नहीं हो। उन्होंने कहा कि जुलाई, 2016 में 47 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी लेकिन एक भी व्यक्ति मारा नहीं गया है। पीठ ने इस मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हुए कहा, लोगों की स्वतंत्रता के अधिकार के मुद्दे पर हम आपके साथ हैं। लेकिन इसके लिए हमारे सामने सही तस्वीर होनी चाहिए। पीठ ने कहा, कुछ समय इंतजार करते हैं। हालात सामान्य होने दीजिए।
इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही गुरुस्वामी ने सवाल उठाया कि संचार व्यवस्था पर पूरी तरह पाबंदी कैसे लगाई जा सकती है। राज्य में तैनात सैनिक भी अपने परिवार के सदस्यों से बात नहीं कर पा रहे हैं। इस पर पीठ ने जानना चाहा, आप जवानों की समस्याओं को क्यों उठा रही हैं यह तो आपकी प्रार्थना नहीं है। जवानों को अनुशासन बनाकर रखना है और यदि उन्हें कोई शिकायत है तो उन्हें हमारे पास आने दीजिए। आप उनका मुद्दा क्यों उठा रही हैं।
गुरुस्वामी ने जब अनुच्छेद 370 का हवाला देने का प्रयास किया तो पीठ ने उन्हें आगाह किया कि इस तरह का कोई बयान मत दीजिए। उन्होंने कहा था कि वह अनुच्छेद 370 पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहीं लेकिन वह लोगों के संवैधानिक अधिकार के मुद्दे पर हैं। (भाषा)