इंदौर, 9 अप्रैल (भाषा) आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से हमेशा गुलजार रहने वाला मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा शहर इंदौर कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण पखवाड़े भर से कर्फ्यू के सख्त घेरे में है। तमाम कवायदों के बावजूद सरकारी तंत्र की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं क्योंकि शहर में इस महामारी का न केवल तेजी से फैलाव हो रहा है, बल्कि इसके मरीजों की मृत्यु दर भी काफी ऊँची है।
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में बृहस्पतिवार सुबह तक की स्थिति में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 5,734 थी, जबकि इनमें से दम तोड़ने वाले मरीजों का आंकड़ा 166 पर था। यानी इस अवधि तक देश में कोविड-19 की चपेट में आए मरीजों की मृत्यु दर 2.89 प्रतिशत थी। प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक बृहस्पतिवार सुबह तक की स्थिति में इंदौर में कोविड-19 के पुष्ट मामलों की तादाद 213 और इस बीमारी के बाद दम तोड़ने वाले मरीजों की तादाद 22 थी। यानी इस अवधि तक इंदौर में कोविड-19 की चपेट में आए मरीजों की मृत्यु दर 10.33 प्रतिशत थी।
आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन स्पष्ट करता है कि फिलहाल इंदौर में कोरोना वायरस मरीजों की मृत्यु दर राष्ट्रीय स्तर से साढ़े तीन गुना ज्यादा है। इस बीच, स्थानीय प्रशासन की यह आरोप लगाते हुए आलोचना की जा रही है कि उसने शुरूआती दौर में कोविड-19 से निपटने में उचित रणनीति नहीं अपनाई जिससे शहर में इस महामारी का खतरा बढ़ता चला गया।
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि ने पीटीआई-भाषा से कहा, “महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात जैसे पड़ोसी राज्यों में कोविड-19 के मामले सामने आने के बावजूद शुरूआत में इंदौर में स्वास्थ्य विभाग का जोर उन यात्रियों की जांच पर रहा जो हवाई मार्ग के जरिए विदेशों से इस शहर में आ रहे थे।” उन्होंने कहा, “यह निर्णय लेने में एक बड़ी चूक थी क्योंकि इंदौर के एक बड़ा वाणिज्यिक केंद्र होने के कारण रेल और सड़क मार्ग के जरिए कई राज्यों के हजारों लोगों की हर रोज शहर में आवा-जाही होती है। शुरूआत में ऐसे लोगों की कोविड-19 की जांच को तवज्जो ही नहीं दी गई।”
गौरतलब है कि कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे के कारण प्रशासन ने जिले में 23 मार्च से तीन दिन का लॉक डाउन घोषित किया था। लेकिन कोरोना वायरस के मरीज मिलते ही 25 मार्च से शहरी सीमा में कर्फ्यू लगा दिया गया था। निधि ने कहा, “मुझे लगता है कि इंदौर जैसे सघन आबादी वाले शहर में लॉकडाउन की घोषणा मार्च की शुरूआत में ही कर दी जानी चाहिए थी।”
मध्यप्रदेश के 30 लाख से ज्यादा आबादी वाले इस शहर के अलग-अलग इलाकों में कोरोना वायरस संक्रमण के मरीज लगातार मिल रहे हैं। लेकिन शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रमुख सलिल साकल्ले का कहना है कि राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग में पिछली तीन बार से लगातार अव्वल रहे शहर में कोरोना वायरस संक्रमण तीसरे चरण यानी सामुदायिक प्रसार की स्थिति में अभी नहीं पहुंचा है।
जानकारों के मुताबिक किसी महामारी को सामुदायिक प्रसार के चरण में तब कहा जाता है जब उसके संभावित स्त्रोत के रूप में किसी घटना या व्यक्ति का निश्चित तौर पर पता नहीं लगाया जा सके। इसके साथ ही, किसी मानवीय बसाहट के सभी स्थानों से महामारी के एक जैसे मामले एक ही समय पर सामने आएं।
साकल्ले ने कहा, “फिलहाल इंदौर में कोरोना वायरस संक्रमण के अधिकतर नए मामले शहर के कुछेक हिस्सों से ही सामने आ रहे हैं।” इंदौर में कोविड-19 के मरीजों की ऊँची मृत्यु दर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “शहर में इस बीमारी से दम तोडऩे वाले मरीजों में ज्यादातर से हैं जो अस्पताल में देरी से भर्ती हुए और गंभीर हालत के चलते उन्हें सीधे गहन चिकित्सा इकार्ई आईसीयूी में रखना पड़ा। ऐसे लोगों को कोविड-19 के अलावा पुरानी बीमारियां भी थीं।”
साकल्ले ने सुझया कि शहर में कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति से निपटने के लिए जारी कर्फ्यू को 14 अप्रैल के बाद भी बढ़ाया जाना चाहिए। गौरतलब है कि शहर के कई स्थानों पर अनियंत्रित जमावड़ों के दृश्य सामने आने के बाद प्रशासन कर्फ्यू को पहले ही सख्त कर चुका है। प्रकोप बढ़ने पर इस बीमारी से निपटने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं प्रशासन ने विक्रेताओं के जरिए दूध, किराना और राशन के साथ आलू-प्याज की घर-घर आपूर्ति कराने की व्यवस्था शुरू की है ताकि लोग अपने घरों से बिल्कुल भी बाहर न निकलें।
इंदौर में जब कोरोना वायरस अपने पैर जमा रहा था, तब महज 15 महीने के कार्यकाल वाली कमलनाथ नीत कांग्रेस सरकार बागी विधायकों के कारण पतन के मुहाने पर थी। विश्लेषकों का मानना है कि उस समय कोरोना वायरस संक्रमण से जनता को बचाने की सरकारी तैयारियों पर राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में छाई गहरी अनिश्चितता का भी असर पड़ा।