हेपेटाइटिस बी और सी के उपचार में प्रगति और विकास के बावजूद, जनता में जागरूकता की कमी के कारण इन दोनों ही बीमारियों को कम करना मुश्किल है। विश्व स्तर पर, लगभग 350 मिलियन लोग क्रोनिक हेपेटाइटिस बी से जूझ रहे हैं और यह लिवर की विफलता और कैंसर का प्रमुख कारण बन रहा है। केवल 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत आबादी इसके कारणों से अनजान है, जिसके कारण वे इस बीमारी की पहचान नहीं कर पाते हैं। सभी देशों में, भारत चौथे स्थान पर है, जो पुरानी हेपेटाइटिस के वैश्विक प्रतिशत का लगभग 50 प्रतिशत वहन करता है।
28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस के तौर पर मनाया जाता है। हर साल इस अवसर पर हेपेटाइटिस की बीमारी और बचाव के उपायों के बारे में लोगों को जागरुक किया जाता है। इस वर्ष विश्व हेपेटाइटिस दिवस सभी देशों से आग्रह कर रहा है कि वे इस साल की थीम (हेपेटाइटिस को कम करें) को बढ़ावा दें।
इस बीमारी में व्यक्ति के लिवर में सूजन आ जाती है। इसके होने का प्रमुख कारण वायरस या संक्रमण है। इसके सभी लक्षण एक दूसरे से काफी मिलते जुलते हैं इसलिए बिना निदान के इनके बीच के फर्क को पहचाना नहीं जा सकता है। हेपेटाइटिस पूरे भारत को अपनी चपेट में ले चुका है। नियमित रुप से जांच और निदान न करवाने के कारण ही बीमारी की पहचान नहीं हो पाती है जो समय के साथ गंभीर होती चली जाती है। इसके अन्य कारणों में टैटू करवाना, फूड सप्लीमेंट का सेवन, ड्रग्स इंजेक्ट करना आदि शामिल हैं।
पटपड़गंज स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी और हीपैटोलॉजी विभाग के निदेशक और हेड, डॉ. दीपक लाहोटी का कहना है कि, “ लिवर का काम प्रोटीन, एंजाइम और अन्य पदार्थों का उत्पादन करके पाचन में मदद करना है। यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को साफ करता है और भोजन से ऊर्जा उत्पन्न करता है। इस प्रक्रिया में असामान्यता एक बीमारी का गंभीर संकेत है कि लिवर अच्छी तरह से काम नहीं कर रहा है। लिवर की इस असामान्यता पर लिवर फंक्शन टेस्ट (एलएफटी) किया जा सकता है, जिसमें विश्लेषण के लिए रक्त का नमूना लिया जाता है।”
हेपेटाइटिस वायरस 5 प्रकार के होते हैं-
हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई जिसमें ए और ई संक्रमित भोजन और पानी से फैलते हैं। हेपेटाइटिस बी, सी और डी रक्त से जन्म लेते हैं और हेपेटाइटिस डी केवल उन लोगों में ही होता है जो पहले से ही हेपेटाइटिस बी से संक्रमित होते हैं। हेपेटाइटिस बी को लेकर ध्यान देने वाली बात यह है कि एक मिहला जो इस वायरस से संक्रमित है, वह अपने होने वाले बच्चे को भी हेपेटाइटिस बी से संक्रमित कर देती है। हेपेटाइटिस के 90 प्रतिशत मामले मां का संक्रमण बच्चे में फैलने से होते हैं। इसलिए प्रेग्नेंसी के वक्त होने वाली मां की जांच करके यह पता लगाना जरूरी है कि कहीं वह हेपेटाइटिस बी से संक्रमित तो नहीं है। यदि वह संक्रमित है तो वैक्सीन और उपचार से समय पर बचाव किया जा सकता है।
डॉ. दीपक लाहोटी के अनुसार, “वैक्सीन की मदद से हेपेटाइटिस बी में अब एक बड़ा बदलाव देखा गया है, जो एक सुरक्षित, सस्ती और अच्छी तरह से जांची जाने वाली दवा है। हेपेटाइटिस बी संक्रमण के मामले में सुधार हो रहा है जो ज्यादातर बच्चों में दिखाई देता है। वैक्सीन की मदद से इस बीमारी को 4.7 प्रतिशत से कम किया जा रहा है। हर किसी को हेपेटाइटिस बी से बचाव के लिए वैक्सीन लगवाना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह आपको वायरल संक्रमण से बचाने के लिए एक कवच का काम करता है।”