नई दिल्ली, 3 अप्रैल (भाषा) कोरोना वायरस प्रकोप पर लगाम लगाने के मद्देनजर देश भर में प्रभावी लॉकडाउन के चलते नगर वासियों को प्रदूषण से राहत मिली है। एक तरफ जहां हवा साफ है, सड़कों पर शोरगुल शांत है, चिडय़िों की चहचहाहट फिर से सुनाई दे रही है, वहीं तेंदुए, हाथी से लेकर हिरण तक और यहां तक कि बिलाव जैसे जंगली जानवरों के भी शहरी भारत के कई हिस्सों में नजर आने की खबरें भी सामने आ रही हैं।
कोविड-19 वैश्विक महामारी के चलते जहां इंसान घरों के भीतर रहने को मजबूर हैं वहीं पक्षी और जानवर उन इलाकों में फिर से नजर आन लगे हैं जो कभी उनके ही हुआ करते थे। यह सोचना सुखद है कि प्रकृति अपने घाव भर रही है- खासकर 24 मार्च से प्रभावी हुए अभूतपूर्व बंद के बाद से। लेकिन विशेषज्ञें का कहना है कि यह सब अच्छी खबर नहीं है क्योंकि शहरी केंद्रों में जंगली जानवरों का नजर आना जारी है।
इसी हफ्ते की शुरुआत में चंडीगढ़ की सड़कों पर एक तेंदुआ घूमता नजर आया था। लॉकडाउन के बाद से नोएडा के टीजीआईपी मॉल के पास एक नीलगाय को सड़क पार करते देखा गया, हरिद्वार में सांभर हिरण को सैर करते, गुडग़ांव के निवासियों ने गलेरिया मार्केट में मोरों को पकड़ा और केरल के कोझ्किोड में बिलाव दिखने और वायनाड में हाथी देखे जाने की खबरें सामने आई हैं।
पर्यावरणविद वंदना शिवा ने इसकी तुलना प्रवासी मजदूरों के शहरों से गांवों की तरफ पलायन से करते हुए कहा, जंगल से शरणार्थी शहरों की तरफ आ रहे हैं क्योंकि हमने उनके घरों में घुसपैठ की है। शिवा ने पीटीआई-भाषा से कहा, हमने अन्य जीवों से उनके घर एवं भोजन छीन लिए हैं। वन्यजीव जिनका घर जंगल हैं, उनका शहरी इलाकों में आना अ्च्छा संकेत नहीं है। अब विस्थापित जानवर, जंगलों से शरणार्थी शहरों में आने का साहस जुटा रहे हैं जब सड़कों से गाडय़िां और इंसान नदारद हैं।
उन्होंने कहा, श्रमिकों की तरह, जो गांव से शहर आए और अब दोबारा गांव जा रहे हैं उसी तरह जानवर भी शहरी इलाको को छोड़ देंगे या उन्हें मार दिया जाएगा। अन्य विशेषज्ञें ने भी इस पर सहमति जताई और कहा कि सूनसान सड़कें और घरों से इंसानों का न के बारबर बाहर निकलने से इन जंगली जानवरों का बाहर आना आसान हो गया है। हालांकि यह अच्छा संकेत नहीं है।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने कहा कि इस पलायन का कारण जंगलों में इंसानों की घुसपैठ और जानवरों के लिए खाने का अभाव है। बहुगुणा ने कहा, प्राचीन समय में, मिश्रित जंगल होते थे जहां लोग और जानवर तालमेल बनाकर रहते थे। हमारी संस्कृति कहती है कि सभी जानवर हमारा परिवार है। सरकार ने जंगलों को केवल कारोबार के मकसद से इस्तेमाल किया है। जानवरों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है और भूख की वजह से वे सड़कों पर आ रहे हैं। पद्मभूषण पुरस्कार विजेता एवं वन्यजीव विशेषज्ञ् अनिल प्रकाश जोशी और आनंद आर्य के मुताबिक जिन स्थानों पर ये जानवर दिखे हैं वे वन्यजीव प्राकृतिक वास से करीब हैं जिससे इन जानवरों का वहां जाना आसान हो गया है।