भारत में 11 मई 1998 को हुए परमाणु परीक्षण से कुछ दिन पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने अपने वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा से विश्व शक्तियों द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंधों से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा था। सिन्हा ने अपनी आत्मकथा रिलेंटलेस में बताया कि मई 1998 में एक दिन सुबह-सुबह अचानक वाजपेई ने उन्हें अपने आवास पर तलब किया, जहां पहुंचते ही उन्हें सीधा प्रधानमंत्री के कक्ष में ले जाया गया।
सिन्हा ने उस वाकए को याद करते हुए कहा कि वाजपेई ने एक ऐसी सनसनीखेज खबर उनके साथ साझा की, जिस पर वह गौरवान्वित होने के साथ-साथ स्तब्ध भी रह गए। सिन्हा ने कहा, मैंने तत्काल अनुमान लगाया कि वह मुझे जो कुछ भी बताने वाले हैं, वह न केवल बेहद महत्वपूर्ण बल्कि कुछ अत्यंत गोपनीय भी है।
वाजपेई ने सिन्हा से कहा था, मैंने अगले कुछ दिनों में परमाणु परीक्षण करने का फैसला किया है। यह बेहद गोपनीय ऑपरेशन है क्योंकि विश्व शक्तियां इसे पसंद नहीं करने जा रही हैं। वे हमारे खिलाफ दंडात्मक कार्वाई करेंगे, खास तौर पर आर्थिक मोर्चे पर।
सिन्हा के अनुसार वाजपेई ने उनसे कहा था, हमें इस कदम से आर्थिक मोर्चे पर आने वाली किसी भी चुनौती से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। मैंने सोचा कि मुझे आपको पहले ही सतर्क कर देना चाहिए, ताकि जब यह हो तो आप चौंके नहीं। सिन्हा कहते हैं कि वाजपेई द्वारा बड़ी आराम से कही गई बात को पूरी तरह समझने में उन्हें समय लगा।
सिन्हा ने लिखा, उम्मीद के मुताबिक, भारत ने जो किया विश्व को इसका पता चलते ही प्रलय आ गया। दुनिया के लगभग हर बड़े देश ने भारत द्वारा किए परीक्षण की निंदा की और विभिन्न तरह के प्रतिबंध लगाए। वाजपेई सरकार प्रतिबंधों का सामना करने को प्रतिबद्ध थी।
उन्होंने लिखा, उनके आगे घुटने टेकने का कोई सवाल ही नहीं था। जब प्रतिबंधों ने भारत से ज्यादा उन्हीं देशों (प्रतिबंध लगाने वाले) को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया और जब हमने उन देशों को अपनी मजबूरियों के बारे में बताया तो उन्होंने एक-एक कर उसे हटाना शुरू कर दिया। सिन्हा की इस किताब का प्रकाशन ब्लूम्सबरी ने किया है और सोमवार को इसका विमोचन होगा।