कटनी, दैनिक मध्यप्रदेश
जिले में शिक्षा के अधिकार अधिनियम की जिले में दयनीय स्थिति है रोज गली मुहल्लों चौराहों पर छोटे बच्चे स्कूल जाने की जगह मजदूरी करते हुए देखे जा रहे हैं। गरीबी और बेबसी के आगे सरकार की योजना भी निष्फल साबित हो रही है, जिन हांथो में स्लेट बत्ती होनी थी और कंधों में बैग वह आज सड़कों में रिक्शा चलाने मजबूर हैं। आज माधवनगर में एक 8 साल का रौशन रिक्शा लेकर घर-घर कबाड़ मांगते घूम रहा था तभी उसकी तस्वीर लेने के बाद जब उससे हमारे प्रतिनिधि ने पुछा की तुम स्कूल की जगह मजदूरी क्यों कर रहे हो तुम कौन हो तो वह अपना नाम रौशन बताकर चुप हो गया कुछ नहीं बोला और आगे बढ़ गया।
उसकी खामोशी ने हमारी पूरी व्यवस्था की पोल खोल दी, आज भी तमाम कोशिशों के बाद भी गरीब का बेटा स्कूल नहीं जा पाता जबकि उसकी शिक्षा फ्री है लेकिन अगर वह स्कूल जाने लगा तो उसके घर चूल्हा नहीं जलेगा। बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिए गरीबी का खात्मा जरूरी है तब ही हम अच्छे समाज के निर्माण की उम्मीद कर सकते है।
गरीबी का खात्मा जरूरी है।
सरकार के साथ ही आम जनता की भी सहभागिता की आवश्यकता है। आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति अगर ऐसे एक बच्चे की भी जिम्मेदारी लेने लगे तो सारा परिदृश्य ही बदल जाएगा। अपने आसपास नजर दौड़ाएं, तो रेस्टोरेंट, ढाबों, दुकानों और अन्य जगहों पर बच्चे काम करते हुए मिल जाएंगे। चौदह साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराना या करने को मजबूर करना, अपराध है। इसके बावजूद लोग थोड़े से लाभ के लिए बालश्रम कराते हैं। राज्य को 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य तथा मुफ्त शिक्षा देना कानूनी रूप से बाध्यकारी है। बालश्रम को प्रतिबंधित तथा गैरकानूनी कहा गया है।
बच्चों के स्वास्थ्य और रक्षा के लिए व्यवस्था करने के लिए राज्य कानूनी रूप से बाध्य है। बच्चों को गरियामय रूप से विकास करने के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना राज्य की नैतिक जिम्मेदारी है। समस्या योजनाओं की कमी की नहीं है, वास्तव में इन योजनाओं को धरातल पर लागू ही नहीं किया जाता। सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर दी जाती है। वरना क्या वजह हो सकती है कि बाल श्रम रोकने के लिए तमाम योजनाएं होने के बावजूद आज भी चारों ओर बाल श्रमिकों की भरमार है। ऐसा नहीं कि सरकार चिंतित नहीं है। सरकार ने कई योजनाएं चला कर बाल मजदूरी पर रोक लगाने का प्रयास किया है। सरकार ने आठवीं तक की शिक्षा को अनिवार्य और नि:शुल्क कर दिया है, लेकिन गरीबी और बेबसी के आगे यह योजना भी निष्फल साबित होती दिख रही है। बच्चों के अभिभावक सिर्फ इस वजह से उन्हें स्कूल नहीं भेजते क्योंकि उनके स्कूल जाने से परिवार की आमदनी कम हो जाएगी।