- राज्यों के पास हैं खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार
- नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत के फैसले में दिया निर्देश
नयी दिल्ली, (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी कोई कर नहीं है और संविधान के तहत राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है।
इस फैसले से झारखंड और ओडिशा जैसे खनिज समृद्ध राज्यों को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि उन्होंने उच्चतम न्यायालय से केंद्र द्वारा खदानों और खनिजों पर अब तक लगाए गए हजारों करोड़ रुपये के करों की वसूली पर फैसला करने का आग्रह किया था।
राज्यों ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि केंद्र से करों की वापसी सुनिश्चित करने के लिए फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू किया जाए। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हालांकि दलीलों का कड़ा विरोध किया।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र और राज्यों से इस पहलू पर लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा और कहा कि वह 31 जुलाई को इस मुद्दे पर फैसला करेगी।
उच्चतम न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी कर नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने और पीठ के सात न्यायाधीशों के फैसले को पढ़ा जिसमें कहा गया कि संविधान की दूसरी सूची की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत संसद को खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति नहीं है।
बहुमत के फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वर्ष 1989 में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया वह फैसला सही नहीं है जिसमें कहा गया था कि खनिजों पर रॉयल्टी कर है।
रॉयल्टी वह भुगतान है जो उपयोगकर्ता पक्ष बौद्धिक संपदा या अचल संपत्ति परिसंपत्ति के मालिक को देता है।