नयी दिल्ली, (भाषा) यूपीआई की बढ़ती लोकप्रियता तथा इसे और बढ़ावा देने के मकसद से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने यूपीआई लाइट वॉलेट की सीमा 2,000 रुपये से बढ़ाकर 5,000 रुपये और प्रति लेन-देन सीमा बढ़ाकर 1,000 रुपये करने का प्रस्ताव किया है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकान्त दास ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करते हुए बुधवार को कहा कि लगातार नवोन्मेष और स्वीकार्यता के साथ यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) ने डिजिटल भुगतान को आसान और समावेशी बनाकर देश के वित्तीय परिदृश्य को बदल दिया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ इसके उपयोग को और प्रोत्साहित करने तथा और समावेशी बनाने को लेकर यूपीआई 123 पे में प्रति लेनदेन सीमा 5,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये करने का प्रस्ताव किया गया है। साथ ही यूपीआई वॉलेट की सीमा 2,000 रुपये से बढ़ाकर 5,000 करने और प्रति लेन-देन की सीमा को 1,000 रुपये करने का निर्णय किया गया है।’’
वर्तमान में यूपीआई लाइट वॉलेट की सीमा 2,000 रुपये और प्रति लेन-देन 500 रुपये है।
आरबीआई के बयान के अनुसार, ऑफलाइन डिजिटल माध्यम से छोटे मूल्य के भुगतान की सुविधा के लिए यूपीआई लाइट से जुड़ी रिजर्व बैंक की रूपरेखा में उपयुक्त संशोधन किया जाएगा।
इसके अलावा, ‘यूपीआई 123 पे’ की सुविधा अब 12 भाषाओं में उपलब्ध होगी। इसे मार्च, 2022 में पेश किया गया था, जिसका मकसद ‘फीचर-फोन’ उपयोगकर्ताओं को यूपीआई की सुविधा उपलब्ध कराना था।
इसके साथ, एनईएफटी (राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक कोष अंतरण) और आरटीजीएस (रियल टाइम ग्रास सेटलमेंट सिस्टम) में कोष अंतरण को अंतिम रूप देने से पहले यूपीआई और आईएमपीएस (तत्काल भुगतान सेवा) की तरह खाताधारक के नाम के सत्यापन की सुविधा मिलेगी।
वर्तमान में, यूपीआई और आईएमपीएस ( तत्काल भुगतान सेवा) के तहत पैसा भेजने से पहले भेजने वाले को प्राप्तकर्ता (लाभार्थी) के नाम को सत्यापित करने की सुविधा मिलती है।
दास ने कहा, ‘‘अब आरटीजीएस और एनईएफटी के तहत राशि भेजने से लाभार्थी के नाम के सत्यापन की सुविधा मिलेगी। इससे गलत व्यक्ति को पैसा जाने और धोखाधड़ी की आशंका कम होगी।’’
आरबीआई ने कहा कि इस बारे में जल्दी ही दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।
केंद्रीय बैंक वित्तीय प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण जोखिमों में से एक के रूप में उभर रहे जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर ‘रिजर्व बैंक जलवायु जोखिम सूचना प्रणाली’ (आरबी-सीआरआईएस) भी बनाएगा।
दास ने कहा कि विनियमित संस्थाओं के लिए अपनी बही-खाता और वित्तीय प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए जलवायु जोखिम आकलन करना महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि इस तरह के आकलन के लिए अन्य बातों के अलावा स्थानीय जलवायु परिदृश्यों, जलवायु पूर्वानुमानों और उत्सर्जन से संबंधित उच्च गुणवत्ता वाले आंकड़ों की आवश्यकता होती है। जलवायु से संबंधित उपलब्ध आंकड़ों में विभिन्न अंतराल हैं, जैसे खंडित तथा विविध स्रोत, भिन्न प्रारूप, आवृत्तियां व इकाइयां।
दास ने कहा कि इन अंतरालों को पाटने के लिए रिजर्व बैंक दो भागों वाला एक डेटा संग्रह ‘आरबी-सीआरआईएस’ बनाने का प्रस्ताव करता है।
पहला भाग एक वेब-आधारित निर्देशिका है, जिसमें विभिन्न डेटा स्रोतों (मौसम विज्ञान, भू-स्थानिक, आदि) को सूचीबद्ध किया जाएगा, जो आरबीआई की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होंगे। दूसरा भाग एक डेटा मंच होगा जिसमें डेटासेट (मानकीकृत प्रारूपों में संसाधित डेटा) शामिल होंगे। इस डेटा मंच तक पहुंच चरणबद्ध तरीके से केवल विनियमित संस्थाओं को ही उपलब्ध कराई जाएगी।