इंदौर, 2 नवम्बर (भाषा) जिले के सांवेर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव के लिए मंगलवार को होने वाले मतदान के दौरान मुख्य भिड़ंत दो से वरिष्ठ नेताओं के बीच है जो दल बदल कर चुनावी रण में उतरे हैं। उन्होंने साढ़े सात महीने पहले राज्य में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के तख्तापलट के साथ ही एक दल को छोड़कर दूसरी पार्टी का दामन थामने का मन बना लिया था।
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सांवेर सीट पर कुल 13 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं जिनके भाज्ञ का फैसला 2.70 लाख मतदाता करेंगे। हालांकि, निर्णायक चुनावी लड़ाई भाजपा उम्मीदवार तुलसीराम सिलावट और कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमचंद बौरासी गुड्डू के बीच होनी है।
सिलावट, भाजपा के राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे वफादार समर्थकों में गिने जाते हैं। वह कांग्रेस के उन 22 बागी विधायकों में शामिल रहे जिनके विधानसभा से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल होने के कारण तत्कालीन कमलनाथ सरकार का 20 मार्च को पतन हो गया था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा 23 मार्च को सूबे की सत्ता में लौट आई थी।
कमलनाथ के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार में लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे सिलावट नवंबर 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर सांवेर से ही विधायक चुने गए थे। लेकिन दल बदल के चलते वह उपचुनावों में ‘हाथ के पंजे’ कांग्रेस का चुनाव चिन्ही के बजाय ‘कमल के फूल’ भाजपा का चुनाव चिन्ह के लिए वोट मांगते दिखाई दिए।
सिलावट ने सोमवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “कमलनाथ की अगुवाई वाली कांग्रेस ने राज्य में अपनी सरकार बनने के बाद किसानों, महिलाओं, युवाओं और अतिथि विद्वानों से किए चुनावी वादे नहीं निभाए और मतदाताओं से गद्दारी की। इसी वजह से कमलनाथ सरकार को सत्ता से जाना पड़ा।”
उधर, सिलावट के प्रमुख चुनावी प्रतिद्वन्द्वी और कांग्रेस उम्मीदवार प्रेमचंद गुड्डू ने आरोप लगाया कि कमलनाथ सरकार के पूर्व मंत्री ने निजी स्वार्थों के लिए भाजपा में शामिल होकर सांवेर क्षेत्र के मतदाताओं से गद्दारी की।
बहरहाल, कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाने वाले गुड्डू के साथ भी चुनावों से पहले दल बदल का इतिहास जुड़ा है। गुड्डू पिछले विधानसभा चुनावों से चंद रोज पहले अपने पुत्र अजीत बौरासी के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा के पाले में चले गए थे। लेकिन कमलनाथ सरकार के पतन के बाद उन्होंने सांवेर से उपचुनाव लडऩे के लिए कांग्रेस में ‘घर वापसी’ कर ली।
चुनावी समर के दौरान सांवेर सीट के दोनों प्रमुख उम्मीदवार अपने विरोधी पर मौकापरस्ती के आरोपों के साथ तीखे हमले बोलते नजर आए हैं। हालांकि, यह 10 नवंबर को होने वाली वोटों की गिनती से ही पता चल सकेगा कि मतदाताओं के मन पर उपचुनावों से पहले उनके दल बदल का कितना असर हुआ है?
‘गद्दारी’ के चुनावी आरोप-प्रत्यारोपों से परे मतदाताओं का एक तबका ऐसा भी है जो बुनियादी मुद्दों की बात करता है। सांवेर कस्बे के मुख्य चौराहे पर इलेक्ट्रानिक सामान की दुकान चलाने वाले मनोहरलाल परमार ने गुस्सा जताते हुए कहा, “हमारे कस्बे में बड़े-बड़े राजनेता आते हैं। लेकिन उन्हें उखड़ी सड़क और इससे उड़ती धूल दिखाई नहीं देती।”
उन्होंने अपनी दुकान के सामने सीमेंट की सड़क की छोटी-सी पट्टी दिखाते हुए कहा, “सड़क की यह पट्टी उपचुनावों की घोषणा से ठीक पहले बनाई गई और इसे अधूरा छोड़ दिया गया। हमें इसका कोई अंदाजा नहीं है कि यह सड़क कब पूरी होगी?”