
नई दिल्ली | 21 जून 2025, ICMR ने शुरू की भारत की पहली राष्ट्रीय दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के तहत काम करने वाले राष्ट्रीय प्रतिरक्षा रुधिर विज्ञान संस्थान (NIIH), मुंबई ने देश की पहली राष्ट्रीय दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री तैयार कर ली है। यह पहल उन रोगियों के लिए वरदान साबित होगी जिन्हें विशेष प्रकार के रक्त की आवश्यकता बार-बार पड़ती है, जैसे कि थैलेसीमिया और सिकल सेल रोग के मरीज।
🩸 क्यों ज़रूरी है राष्ट्रीय दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री ?
डॉ. मनीषा मडकाइकर, निदेशक, नागपुर स्थित हीमोग्लोबिनोपथी अनुसंधान केंद्र (CRHCM) ने बताया कि यह रजिस्ट्री ई-रक्तकोष प्लेटफॉर्म से जोड़ी जाएगी, जिससे दुर्लभ रक्त समूह के मरीजों को तेजी से रक्त उपलब्ध हो सकेगा।
वर्तमान में भारत में लगभग 4,000 से अधिक ब्लड बैंक हैं लेकिन उनमें से बहुत कम ही छोटे रक्त समूह एंटीजन की जांच करते हैं। यही कारण है कि एलोइम्यूनाइजेशन जैसी जटिल स्थितियों का खतरा बढ़ता है, जिससे रक्ताधान असफल हो सकता है।
🚨 क्या है “दुर्लभ रक्त समूह”?
- ऐसे रक्त समूह जिनमें उच्च आवृत्ति एंटीजन (HFA) की कमी होती है (1:1000 या इससे कम)
- जिनका फेनोटाइप शून्य होता है या सामान्य एंटीजन नहीं पाए जाते
- ये मरीज सामान्य रक्त से एलर्जी जैसी प्रतिक्रिया दे सकते हैं
📊 भारत में रक्त की मांग:
- प्रतिवर्ष 1 लाख से 1.5 लाख थैलेसीमिया मरीजों को बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है
- प्रतिदिन 1,200 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं
- सालाना होती हैं:
- 6 करोड़ सर्जरी
- 24 करोड़ बड़े ऑपरेशन
- 33.1 करोड़ कैंसर प्रक्रियाएं
- 1 करोड़ गर्भावस्था संबंधी जटिलताएं
इन सभी स्थितियों में रक्त की भारी जरूरत होती है।
🔗 क्या होगा इस पहल से लाभ?
- ई-रक्तकोष से एकीकरण के बाद ब्लड बैंकों और मरीजों के बीच डायरेक्ट कनेक्शन
- क्रॉस-मैचिंग और सटीक एंटीजन मिलान संभव
- पूरे देश में दुर्लभ रक्तदाताओं की खोज आसान
- ब्लड बैंक अब अपने स्टॉक और डोनर नेटवर्क को बेहतर प्रबंधित कर पाएंगे
🧬 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
ISBT (International Society of Blood Transfusion) ने अब तक 47 रक्त समूह प्रणालियों और 360+ एंटीजन की पहचान की है, लेकिन भारत के अधिकतर ब्लड बैंक सिर्फ ABO और RhD तक सीमित हैं। इससे गलत रक्ताधान की संभावनाएं बनी रहती हैं।
ICMR-NIIH की यह पहल भारत में रक्तदान व्यवस्था को एक नया आयाम देगी। यह रजिस्ट्री थैलेसीमिया, सिकल सेल जैसी बीमारियों से पीड़ित हजारों मरीजों के जीवन को बचाने में सहायक होगी। साथ ही ब्लड बैंकों की दक्षता और मरीजों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।
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